
भारत की सॉफ़्टवेयर इंडस्ट्री एक बड़े परिवर्तन के दौर से होकर गुजर रही है।
टीसीएस ने मिड और सीनियर मैनेजमेंट स्तर पर 12,000 से अधिक नौकरियां खत्म करने का फैसला किया है।
यह कंपनी पांच लाख से अधिक आईटी प्रोफेशनल्स को रोजगार देती है और 283 अरब डॉलर की भारतीय सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री की प्रमुख हिस्सा है।
इसे देश में व्हाइट-कॉलर नौकरियों की रीढ़ माना जाता है। व्हाइट-कॉलर नौकरियां वे होती हैं, जिनमें ऑफिस या पेशेवर माहौल में काम किया जाता है। इनमें शारीरिक श्रम की बजाय मानसिक और मैनेजमेंट से जुड़ा काम अधिक होता है।
टीसीएस का कहना है कि यह कदम कंपनी को ‘भविष्य के लिए तैयार’ करने के उद्देश्य से उठाया गया है, क्योंकि वह नए क्षेत्रों में निवेश कर रही है और बड़े पैमाने पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपना रही है।
- Goldy Brar Rohit Godara Lawrence Gang: यूपी में STF ने बुरी तरह से तोड़ी गैंग की कमर
- Trump H1B Visa $100,000 Fee के बावजूद अमेरिकी बाजार में चमकतीं Indian IT Companies
- Rail Neer Price: अब और सस्ता मिलेगा रेलवे का पैकेज्ड पानी, जानें नई दरें
- Motorola Slim Smartphone हुआ लॉन्च – 400MP कैमरा, 6500mAh बैटरी और 5G कनेक्टिविटी के साथ
- Royal Enfield Hunter 350 की GST कटौती से हुई कीमतों में भारी गिरावट – जानिए वेरिएंट्स, कलर्स और असली माइलेज
पिछले कई दशकों से टीसीएस जैसी कंपनियां कम लागत में वैश्विक ग्राहकों के लिए सॉफ्टवेयर तैयार करती रही हैं, लेकिन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण कई कार्य स्वचालित हो रहे हैं और ग्राहक अब नई तकनीक आधारित समाधान चाह रहे हैं।
इसे भी पढे: Russia Earthquake: 1952 के बाद का सबसे ताकतवर झटका
कंपनी ने कहा, “हम री-स्किलिंग और नई भूमिकाओं में नियुक्ति की कई पहल कर रहे हैं, लेकिन जिन सहयोगियों को नई भूमिकाएं नहीं मिल पा रहीं, उन्हें कंपनी से मुक्त किया जा रहा है।”

छंटनी की मूल वजह क्या है?

स्टाफ़िंग फर्म टीमलीज़ डिजिटल की सीईओ नीति शर्मा ने बीबीसी से कहा, “आईटी कंपनियां मैनेजर स्तर के कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं और सीधे काम करने वाले कर्मचारियों को प्राथमिकता दे रही हैं, ताकि वर्कफोर्स को अधिक संगठित किया जा सके और उसकी दक्षता बढ़ाई जा सके।”
उन्होंने यह भी बताया कि एआई, क्लाउड और डेटा सिक्योरिटी जैसे नए क्षेत्रों में भर्तियां बढ़ी हैं, लेकिन नौकरियों की कटौती की गति के मुकाबले नई भर्तियां उतनी तेज़ नहीं हो रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय देश की सॉफ़्टवेयर इंडस्ट्री में मौजूद ‘स्किल गैप’ को भी सामने लाता है।
बिज़नेस सलाहकार कंपनी ‘ग्रांट थॉर्नटन भारत’ के अर्थशास्त्री ऋषि शाह के अनुसार, “जनरेटिव एआई की वजह से उत्पादकता में तेजी से इजाफा हो रहा है।”
इसे भी पढे: अंतरिक्ष में पहली बार इंसुलिन और ब्लड शुगर पर होगी रिसर्च:
यह परिवर्तन कंपनियों को मजबूर कर रहा है कि वे अपने वर्कफोर्स की संरचना पर दोबारा विचार करें और तय करें कि संसाधनों को एआई के साथ काम करने वाली भूमिकाओं में कैसे तैनात किया जाए।
“नैसकॉम के मुताबिक, 2026 तक भारत में 10 लाख एआई विशेषज्ञों की ज़रूरत होगी, पर अभी 20% से भी कम आईटी पेशेवरों के पास ज़रूरी एआई स्किल्स हैं।”
टेक कंपनियां नए एआई टैलेंट को तैयार करने के लिए प्रशिक्षण पर अधिक खर्च कर रही हैं, लेकिन जिनके पास आवश्यक कौशल नहीं है, उन्हें नौकरी से बाहर किया जा रहा है।
- Goldy Brar Rohit Godara Lawrence Gang: यूपी में STF ने बुरी तरह से तोड़ी गैंग की कमर
- Trump H1B Visa $100,000 Fee के बावजूद अमेरिकी बाजार में चमकतीं Indian IT Companies
- Rail Neer Price: अब और सस्ता मिलेगा रेलवे का पैकेज्ड पानी, जानें नई दरें
- Motorola Slim Smartphone हुआ लॉन्च – 400MP कैमरा, 6500mAh बैटरी और 5G कनेक्टिविटी के साथ
- Royal Enfield Hunter 350 की GST कटौती से हुई कीमतों में भारी गिरावट – जानिए वेरिएंट्स, कलर्स और असली माइलेज
ट्रंप के टैरिफ़ से जुड़े फैसले का प्रभाव

एआई से हुए बदलावों के अलावा, वैश्विक निवेश बैंकिंग फर्म जेफ़रीज़ का कहना है कि टीसीएस की घोषणा भारत के आईटी सेक्टर में ‘विकास से जुड़ी गहरी चुनौतियों’ को भी उजागर करती है।
जेफ़रीज़ ने एक नोट में लिखा, “वित्त वर्ष 2022 से इंडस्ट्री स्तर पर नेट हायरिंग में गिरावट देखी गई है, जिसका मुख्य कारण मांग में लगातार बनी रही कमी है।”
अमेरिका में आईटी सेवाओं की मांग पर भी असर पड़ा है, जो भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों की कुल आय का लगभग आधा हिस्सा बनाती है। इस पर डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ़ नीतियों का भी प्रभाव पड़ा है।
ऐसे ही खबरों के लिए हमारे WhatsApp चैनल से जुड़े:
हालांकि टैरिफ़ का सीधा असर वस्तुओं पर होता है, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि कंपनियां टैरिफ़ से जुड़ी अनिश्चितताओं और वैश्विक सोर्सिंग रणनीतियों के आर्थिक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए आईटी पर होने वाले अतिरिक्त खर्च को सीमित कर रही हैं।
जेफ़रीज़ के अनुसार, “एआई तकनीक को अपनाने के चलते अमेरिकी कंपनियां लागत घटाने का दबाव बना रही हैं, जिससे बड़ी आईटी कंपनियों को कम कर्मचारियों के साथ काम करना पड़ रहा है।”
इसका प्रभाव अब बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे जैसे शहरों में साफ़ नजर आने लगा है, जो कभी भारत के आईटी बूम का केंद्र रहे हैं।
एक अनुमान के अनुसार, पिछले साल आईटी सेक्टर में करीब 50 हजार लोगों की नौकरियां चली गईं। भारत की शीर्ष छह आईटी कंपनियों में नए भर्ती कर्मचारियों की संख्या में 72% की गिरावट दर्ज की गई।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर

इसका प्रभाव भारत की समग्र अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है, जो पहले से ही हर साल वर्किंग फोर्स में शामिल होने वाले लाखों युवा ग्रेजुएट्स के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा करने के संघर्ष से जूझ रही है।
मजबूत मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कमी के चलते, 1990 के दशक में इन सॉफ्टवेयर कंपनियों ने भारत को वैश्विक बैक ऑफिस में बदल दिया और ये लाखों नए आईटी वर्कर्स की पहली पसंद बन गईं।
इन कंपनियों ने एक नया संपन्न मध्यम वर्ग तैयार किया, जिसने शहरी विकास को गति दी और कारों व घरों की मांग में इज़ाफा किया।
लेकिन जब स्थिर और अच्छी सैलरी वाली नौकरियों की संख्या घट रही है, तब भारत की सर्विस सेक्टर पर आधारित आर्थिक वृद्धि पर सवाल खड़े होने लगे हैं।
कुछ साल पहले तक भारत की प्रमुख आईटी कंपनियां हर साल लगभग 6 लाख नए ग्रेजुएट्स को रोजगार देती थीं। लेकिन टीमलीज़ डिजिटल के मुताबिक, पिछले दो वर्षों में यह संख्या घटकर सिर्फ 1.5 लाख के आसपास रह गई है।
फिनटेक स्टार्टअप्स और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स जैसे उभरते हुए सेक्टर बाकी युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं।
लेकिन नीति शर्मा के अनुसार, “कम से कम 20-25 प्रतिशत नए ग्रेजुएट्स को कोई नौकरी नहीं मिल पाएगी। ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स कभी भी आईटी कंपनियों जैसी बड़े पैमाने पर भर्ती नहीं कर सकते।”
भारत के कई बड़े बिज़नेस लीडर्स ने इन रुझानों के आर्थिक असर पर चिंता जताई है.
टीसीएस के ऐलान पर प्रतिक्रिया देते हुए दक्षिण भारत के प्रमुख म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर डी. मुथुकृष्णन ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि आईटी सेक्टर में आई गिरावट का असर केवल तकनीकी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा। इसका प्रभाव कई सहायक सेवाओं और उद्योगों पर भी पड़ेगा, जो इस क्षेत्र पर निर्भर हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि इस गिरावट से रियल एस्टेट सेक्टर को नुकसान होगा और प्रीमियम श्रेणी की उपभोक्ता मांग में भी बड़ी गिरावट आ सकती है। इससे अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भी सुस्ती देखी जा सकती है।
कुछ महीने पहले मोटर टेक्नोलॉजी कंपनी एटॉमबर्ग के सह-संस्थापक अरिंदम पॉल ने लिंक्डइन पर आगाह किया था कि एआई भारत के मध्यम वर्ग पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
उन्होंने लिखा था, “आज की लगभग 40-50 प्रतिशत व्हाइट-कॉलर नौकरियां खत्म हो सकती हैं, जिसका सीधा असर मध्यम वर्ग और उपभोग की पूरी कहानी के अंत के रूप में देखा जा सकता है।”
एआई के बदलावों के साथ भारतीय टेक कंपनियां कितनी तेज़ी से तालमेल बैठाती हैं, यही उनकी भविष्य की दिशा तय करेगा।
यह भी निर्धारित करेगा कि भारत अपने मध्यम वर्ग को कितना विस्तार दे पाता है और जीडीपी की रफ्तार बनाए रखता है।
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
सबसे अधिक लोकप्रिय
- Goldy Brar Rohit Godara Lawrence Gang: यूपी में STF ने बुरी तरह से तोड़ी गैंग की कमर
- Trump H1B Visa $100,000 Fee के बावजूद अमेरिकी बाजार में चमकतीं Indian IT Companies
- Rail Neer Price: अब और सस्ता मिलेगा रेलवे का पैकेज्ड पानी, जानें नई दरें
- Motorola Slim Smartphone हुआ लॉन्च – 400MP कैमरा, 6500mAh बैटरी और 5G कनेक्टिविटी के साथ
- Royal Enfield Hunter 350 की GST कटौती से हुई कीमतों में भारी गिरावट – जानिए वेरिएंट्स, कलर्स और असली माइलेज