सुपौल-मधुबनी के बीच हो रहा था पुल निर्माण, 1200 करोड़ की परियोजना में फिर से भारी लापरवाही उजागर
🔹 घटना का विवरण

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बिहार के सुपौल और मधुबनी ज़िलों के बीच कोसी नदी पर बन रहे एक निर्माणाधीन पुल के गिर जाने से राज्य में एक बार फिर से अव्यवस्थाओं और निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार की पोल खुल गई है। यह हादसा बुधवार की दोपहर को हुआ, जब 1200 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे इस पुल के एक हिस्से का स्ट्रक्चर अचानक धराशायी हो गया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, निर्माण कार्य के दौरान अचानक एक तेज़ आवाज़ आई और देखते ही देखते पुल का बड़ा हिस्सा ढह गया। हादसे के वक़्त वहां कई श्रमिक काम कर रहे थे। कई लोग मलबे के नीचे दब गए, कुछ को गंभीर चोटें आईं, और मृतकों की संख्या की आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं की गई है, लेकिन स्थानीय सूत्रों के अनुसार 3–5 लोगों की मौत की आशंका है।
🔹 हादसे में घायल और दबे हुए लोगों की स्थिति
स्थानीय लोगों और अन्य श्रमिकों ने राहत कार्य में भाग लेते हुए मलबे के नीचे दबे श्रमिकों को निकालने की कोशिश की। घायलों को नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और बाद में दरभंगा मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (DMCH) में रेफर किया गया।
हादसे में घायल एक मज़दूर का कहना है:
“हम रोज़ की तरह काम कर रहे थे। अचानक ज़ोर की आवाज़ आई और सब कुछ हिल गया। भागने का मौका ही नहीं मिला। जो लोग नीचे थे, वो दब गए।”
🔹 पुल निर्माण में लापरवाही के पहले भी आए हैं आरोप
यह कोई पहली बार नहीं है कि बिहार में निर्माणाधीन पुल या इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट हादसे का शिकार हुए हों। इससे पहले भी भागलपुर, सिवान, और पटना में इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। सुपौल-मधुबनी पुल परियोजना भी शुरुआत से ही विवादों में रही है — बजट में गड़बड़ियां, निर्माण कार्य में देरी, और मानक स्तर की अनदेखी जैसे आरोप लगते रहे हैं।
🔹 प्रशासनिक प्रतिक्रिया: जांच और कार्रवाई के आदेश
बिहार सरकार के लोक निर्माण विभाग (PWD) ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा है कि एक उच्च स्तरीय जांच टीम गठित की गई है। जिला प्रशासन और NDRF की टीमों को राहत और बचाव कार्य में लगाया गया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हादसे पर दुख जताया और कहा:
“इस मामले में किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी।”
हालांकि जनता और विपक्ष का आरोप है कि सरकार सिर्फ बयानबाज़ी करती है और जमीनी कार्रवाई नगण्य होती है।
🔹 राजनीतिक बयानबाज़ी और सोशल मीडिया का ग़ुस्सा
इस दर्दनाक हादसे के बाद विपक्षी दलों ने सरकार पर सीधा हमला बोला है। तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया:
“बिहार में पुल गिरना अब कोई खबर नहीं रही — ये तो रूटीन बन गया है। 1200 करोड़ की लागत से बना रहा पुल गिर गया, और सरकार सिर्फ जांच के नाम पर लीपापोती कर रही है!”
सोशल मीडिया पर भी लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ा है। ट्विटर पर #बिहारपुलहादसा और #ConstructionScam ट्रेंड करने लगे।

जनता में बढ़ती असुरक्षा और अविश्वास
पिछले कुछ वर्षों में बिहार में बार-बार पुलों का गिरना एक भयानक ट्रेंड बन गया है। जनता का विश्वास न सिर्फ ठेकेदारों, बल्कि प्रशासन और सरकार से भी उठता जा रहा है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है:
“अगर यही हाल रहा तो कोई भी पुल सुरक्षित नहीं होगा। हमें डर लगता है अब इन पर चलने में भी।”
🔹 तकनीकी विशेषज्ञों की राय
इस प्रकार के हादसों में डिज़ाइन फॉल्ट, सामग्री की गुणवत्ता में कमी, और वर्क सुपरविजन की कमी मुख्य कारण माने जाते हैं। एक सेवानिवृत्त इंजीनियर ने कहा:
“1200 करोड़ की लागत वाली परियोजना में ऐसा हादसा होना दर्शाता है कि कहीं न कहीं बहुत बड़ी तकनीकी और प्रबंधन की चूक है।”
🔹 आगे क्या…?
सरकार ने राहत और मुआवज़े की घोषणा अभी नहीं की है, लेकिन यदि पूर्व के मामलों की तरह देखें तो प्रभावित परिवारों को 2–5 लाख रुपये तक की अनुग्रह राशि देने की उम्मीद है।
परंतु बड़ा सवाल ये है कि क्या केवल मुआवज़ा ही इस दर्द और संकट का हल है?

🚨 बिहार में कोसी नदी पर निर्माणाधीन पुल गिरा: हादसे में कई श्रमिक घायल, मृतकों की आशंका
✅ निष्कर्ष: क्या ये हादसा है या सिस्टम की विफलता?
हर बार की तरह इस बार भी “जांच” की बात होगी, “दोषियों पर कार्रवाई” की बात होगी — लेकिन आख़िर कब तक बिहार में पुलों का गिरना एक आम बात बनी रहेगी?
ये हादसा सिर्फ तकनीकी नहीं है — ये सिस्टम की सामूहिक नाकामी का प्रतीक है।
जहाँ जान सस्ती है, वहाँ निर्माण महंगे हैं।
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