नई दिल्ली। एक चौंकाने वाले आरटीआई (RTI) खुलासे ने आधार कार्ड और UIDAI (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 14 सालों (2010-2024) में करीब 11.69 करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन इनमें से सिर्फ 1.15 करोड़ आधार कार्ड ही निष्क्रिय किए गए हैं। इसका मतलब है कि करीब 90% मृतकों के आधार नंबर आज भी एक्टिव हैं।RTI में क्या खुलासा हुआ?RTI के जवाब के अनुसार, जून 2025 तक भारत में 142.39 करोड़ आधार धारक पंजीकृत हैं, जबकि यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (UNFPA) के अनुसार अप्रैल 2025 में भारत की कुल जनसंख्या 146.39 करोड़ थी। सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) के आंकड़ों के मुताबिक, 2007 से 2019 के बीच हर साल औसतन 83.5 लाख मौतें दर्ज हुईं। इस हिसाब से पिछले 14 वर्षों में करीब 11.7 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई, लेकिन UIDAI ने केवल 1.15 करोड़ आधार नंबर ही डीएक्टिवेट किए।

आधार डीएक्टिवेशन में देरी क्यों?
UIDAI का कहना है कि मृतकों के आधार नंबर निष्क्रिय करने की प्रक्रिया सीधी नहीं है। यह रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RGI) द्वारा उपलब्ध कराए गए मृत्यु रिकॉर्ड पर निर्भर करती है। UIDAI के अनुसार, जब मृत्यु का डेटा प्राप्त होता है, तब पूरी जांच-पड़ताल के बाद संबंधित आधार नंबर डीएक्टिवेट किया जाता है।2022 में UIDAI ने 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लगभग 1.55 करोड़ मृत्यु रिकॉर्ड हासिल किए, जिनमें से 1.17 करोड़ आधार कार्ड निष्क्रिय किए गए।
UIDAI ने जारी की नई गाइडलाइंस

इस समस्या से निपटने के लिए अगस्त 2023 में UIDAI ने नई गाइडलाइंस लागू कीं। इसके तहत मृत्यु रिकॉर्ड को आधार डेटा से मिलान करने के लिए कम से कम 90% नाम और 100% लिंग का मिलान अनिवार्य किया गया। साथ ही, UIDAI ने “परिवार के सदस्य की मृत्यु की रिपोर्टिंग” नामक सुविधा भी शुरू की है, जिससे लोग ऑनलाइन मृतकों की जानकारी अपडेट कर सकते हैं।UIDAI अब API आधारित तकनीकी प्लेटफॉर्म भी तैयार कर रहा है जिससे मृत्यु रिकॉर्ड का रीयल-टाइम अपडेट संभव हो सके।
बिहार में 100% से ज्यादा आधार सैचुरेशन का खुलासा
RTI के जवाब के अनुसार, जून 2025 तक भारत में 142.39 करोड़ आधार धारक पंजीकृत हैं, जबकि यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड (UNFPA) के अनुसार अप्रैल 2025 में भारत की कुल जनसंख्या 146.39 करोड़ थी। सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) के आंकड़ों के मुताबिक, 2007 से 2019 के बीच हर साल औसतन 83.5 लाख मौतें दर्ज हुईं। इस हिसाब से पिछले 14 वर्षों में करीब 11.7 करोड़ लोगों की मृत्यु हुई, लेकिन UIDAI ने केवल 1.15 करोड़ आधार नंबर ही डीएक्टिवेट किए।
क्या हैं इसके खतरे?
मृतकों के आधार नंबर सक्रिय रहने से कई गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं,
जैसे—फर्जी पहचान से धोखाधड़ीसरकारी योजनाओं में फर्जी लाभ उठानाचुनाव में फर्जी वोटिंग
चुनाव में फर्जी वोटिंग
विशेषज्ञों का कहना है कि आधार डेटाबेस और मृत्यु पंजीकरण में तालमेल की भारी कमी है जो भविष्य में कई तरह की वित्तीय और प्रशासनिक गड़बड़ियों का कारण बन सकता है।
क्या कहना है विशेषज्ञों का?
जानकारों का मानना है कि UIDAI को अपनी प्रणाली को और पारदर्शी बनाना होगा। साथ ही, मृत्यु पंजीकरण की प्रक्रिया को डिजिटल और अनिवार्य बनाना जरूरी है ताकि मृतकों के आधार कार्ड तुरंत निष्क्रिय किए जा सकें। UIDAI का दावा है कि वह तकनीकी सुधार कर रहा है, लेकिन यह RTI खुलासा आधार सिस्टम की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
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