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अंतरिक्ष में पहली बार इंसुलिन और ब्लड शुगर पर होगी रिसर्च: एक्सिओम-4 मिशन के तहत एस्ट्रोनॉट्स पहनेंगे ग्लूकोज मॉनिटर, डाइबिटीज के इलाज में मिल सकती है नई दिशा

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भारतीय वायुसेना में पायलट शुभांशु शुक्ला ISS पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय होंगे।

एक्सिओम-4 मिशन डाइबिटीज के मरीजों के लिए अंतरिक्ष यात्रा की नई उम्मीद लेकर आया है। इस मिशन के तहत UAE की हेल्थकेयर कंपनी बुर्जील होल्डिंग्स माइक्रोग्रैविटी यानी अंतरिक्ष की भारहीन स्थिति में ग्लूकोज के व्यवहार पर रिसर्च कर रही है।

इस प्रयोग के तहत भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला समेत अन्य क्रू मेंबर ऑर्बिटल लैब में 14 दिनों तक लगातार ग्लूकोज मॉनिटर पहनेंगे, जो सूट राइड एक्सपेरिमेंट का हिस्सा है।

अबू धाबी स्थित बुर्जील होल्डिंग्स के CMO डॉ. मोहम्मद फितयान ने पीटीआई को बताया कि इस रिसर्च का उद्देश्य यह समझना है कि अंतरिक्ष में रहने के दौरान ब्लड शुगर लेवल में कोई उतार-चढ़ाव होता है या नहीं।

इस अध्ययन से वैज्ञानिकों को न केवल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए, बल्कि उन मरीजों के लिए भी एडवांस वियरेबल तकनीक विकसित करने में मदद मिलेगी जो लंबे समय तक बिस्तर पर रहते हैं या जिनकी मूवमेंट लकवा जैसी बीमारियों के कारण सीमित हो जाती है।

इसके अलावा, अंतरिक्ष यात्री अपने साथ इंसुलिन पेन भी ले जाएंगे जिन्हें अलग-अलग तापमान में रखा गया होगा। इसका उद्देश्य यह देखना है कि माइक्रोग्रैविटी का इंसुलिन के अणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है।

Image Source Dainik Bhaskar

अब तक कोई भी डाइबिटीज मरीज नहीं गया अंतरिक्ष यात्रा पर

अभी तक किसी भी शुगर (डाइबिटीज) मरीज ने अंतरिक्ष की यात्रा नहीं की है। NASA की नीति के अनुसार, इंसुलिन पर निर्भर डाइबिटिक मरीजों को अंतरिक्ष में जाने की अनुमति नहीं दी जाती। हालांकि, जो मरीज इंसुलिन नहीं लेते, उनके लिए कोई आधिकारिक रोक नहीं है, लेकिन फिर भी अब तक ऐसा कोई उदाहरण सामने नहीं आया है जहां कोई डाइबिटिक व्यक्ति एस्ट्रोनॉट बनकर अंतरिक्ष गया हो।

एक्सिओम-4 मिशन के तहत कुल 60 वैज्ञानिक प्रयोग किए जा रहे हैं, जिनमें से 7 प्रोजेक्ट भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए हैं। इन प्रयोगों में शामिल हैं:

  • माइक्रोग्रैविटी में स्प्राउट्स का अंकुरण
  • फसलों के बीजों पर भारहीनता का प्रभाव
  • एल्गी पर माइक्रोग्रैविटी और रेडिएशन का असर

ये रिसर्च न केवल अंतरिक्ष विज्ञान, बल्कि पृथ्वी पर कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी नई संभावनाओं के रास्ते खोल सकते हैं।

क्या बदल सकती है यह रिसर्च?

  • यह रिसर्च डायबिटीज से जूझ रहे लोगों के लिए अंतरिक्ष मिशनों का रास्ता खोल सकती है, जिससे भविष्य में ऐसे मरीजों को भी स्पेस मिशन की अनुमति मिलना संभव हो सकेगा।
  • AI-आधारित प्रेडिक्शन मॉडल्स विकसित किए जा सकेंगे, जो अंतरिक्ष में इंसुलिन की जरूरत और मेटाबोलिक बदलावों को रियल-टाइम में ट्रैक कर सकें।
  • यह अध्ययन दूरदराज और संसाधनहीन क्षेत्रों में डायबिटीज के इलाज और टेली-हेल्थ सेवाओं को बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकता है।
  • साथ ही, रिसर्च से ऐसी नई दवाओं के विकास में मदद मिलेगी जो इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ा सकें या बैठे-बैठे कसरत जितना असर दें — यानी कम मूवमेंट वाले मरीजों के लिए यह बड़ी राहत बन सकती है।

एक्सिओम-4 मिशन की लॉन्चिंग छह बार टली

इस मिशन की लॉन्चिंग पहले 29 मई, 8 जून, 10 जून, 11 जून, 12 जून और 22 जून को तय की गई थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) के Zvezda सर्विस मॉड्यूल के पिछले हिस्से में हुए मरम्मत कार्य की समीक्षा और सुरक्षा जांच के चलते मिशन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा।

Ax-4 मिशन में चार देशों के चार अंतरिक्ष यात्री 14 दिनों के लिए अंतरिक्ष स्टेशन पर जाएंगे। इनमें भारतीय एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला भी शामिल हैं, जो ISS पर जाने वाले पहले भारतीय और अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय होंगे। उनसे पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत यूनियन के स्पेसक्राफ्ट से अंतरिक्ष यात्रा की थी।

Dainik Bhaskar Report

https://www.bhaskar.com/national/news/nasa-spacex-axiom-astronauts-mission-glucose-insulin-shubhanshu-shukla-135283374.html

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Vipin Sharma

विपिन शर्मा डिजिटल न्यूज तक के आधिकारिक समाचार लेखक हैं, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर सटीक और समय पर अपडेट प्रदान करने के लिए जाने जाते हैं। वे अपने दर्शकों को नवीनतम घटनाओं से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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